बिहार चुनाव के नतीजों ने इस बार चौंका दिया. इसमें कोई शक नहीं की प्रशांत किशोर अपनी पदयात्रा और मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से बिहार की जनता में प्रवेश कर गए थे. लेकिन कई गलतियां हुईं, जिसे राजनीति में अनुभवहीनता कह सकते हैं. सिवाय पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह के अलावा कोई भी अनुभव वाला नेता इनके साथ नहीं था. राजनीति सिर्फ आदर्शवादी बातों से नहीं होती है. ज़मीन पर कार्यकर्ता बनाने होते हैं. अपने मुद्दों पर अड़े रहना होता है. इन्होंने एनडीए के कई नेताओं पर आरोप लगाए, साक्ष्य भी रखे. लेकिन अचानक से वैसे मुद्दे और चैप्टर इन्होंने बंद कर दिये. इन्हें मजबूती से उन मुद्दों को बरकरार रखना चाहिए था. पलायन और गरीबी को बिहारी जनता अपनी नियति मानती है. इसकी चर्चा इन्होंने की, लेकिन कोई प्रायोगिक हल की रूप रेखा नहीं दी. समस्या का जो कुछ हल इन्होंने दिया, वह कहीं से भी प्रायोगिक नज़र नहीं आया. समस्या सबको समझ में आई, लेकिन उचित समाधान किसी को नज़र नहीं आया. प्रशांत किशोर आधी आबादी यानी महिला के लिए कुछ भी प्रासंगिक लेकर नहीं आए. शराबबंदी को ख़त्म करने का नारा भी महिलाओं को पसंद नहीं आया होगा.










