शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्राध्यक्षों का पच्चीसवां शिखर सम्मेलन संयुक्त घोषणा पत्र के साथ समाप्त हो गया. 31 अगस्त से लेकर 1 सितंबर तक चलने वाली इस बैठक में सदस्य देशों ने आतंकवाद, ट्रंप की संरक्षणवादी नीति, रूस और यूक्रेन युद्ध, गाजा संकट एवं वैश्विक व्यवस्था पर पश्चिम के अधिपत्य के साथ कमजोर होती ग्लोबल गवर्नेंस पर अपनी चिंताएं साझा की. इन चुनौतियों से निपटने के लिए इन्होंने अपने घोषणा पत्र में भारत के द्वारा दिए गए मूल संकल्प “एक पृथ्वी, एक परिवार एवं एक भविष्य” पर जोड़ दिया.चूंकि शंघाई सहयोग संगठन का मुख्य जोर बहुध्रुवीकृत व्यवस्था को मजबूत करते हुए तीसरी दुनिया के देशों के हितों की रक्षा करना है, इसलिए इस सम्मेलन में इन देशों की चिंताओं को रेखांकित करते हुए उसे दूर करने के प्रयास पर भी बल दिया गया. यह शिखर सम्मेलन भारत के लिए एक अवसर था, जहां एक ओर ट्रंप अपनी टैरिफ नीति से भारत की वैश्विक आकांक्षाओं को नियंत्रित करना चाह रहे हैं, तो दूसरी ओर पाकिस्तान अमेरिका के साथ शीतयुद्ध कालीन गठबंधन से भारत के शक्ति संतुलन को चुनौती देने के प्रयास में है. इसी संदर्भ में इस शिखर सम्मेलन को समझने की आवश्यकता है.