मैं बच्चा था…, पिता बेकसूर थे लेकिन सामने उनकी लाश पड़ी थी, मलियाना नरसंहार की कहानी पीड़ितों की जुबानी

    1987 में  हुए मलियाना कांड को याद कर आज भी पीड़ित और मलियाना के लोग कांप उठते हैं। वर्ष 1987 में मेरठ सांप्रदायिक दंगों की आंच में झुलस रहा था। 14 अप्रैल को शब-ए-बरात के दिन सांप्रदायिक दंगा हुआ, जिसमें 12 लोगों की मौत हुई। तब कर्फ्यू लगाकर स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया, लेकिन तनाव बना रहा और मेरठ में दो तीन महीनों तक रुक-रुक कर दंगे होते रहे।

    22 मई को हाशिमपुरा नरसंहार हुआ, जिसमें 42 लोगों की हत्या की गई। इसके बाद 23 मई को हुए नरसंहार में अब आए फैसले में किसी को सजा नहीं हुई, जबकि 63 लोग मारे गए थे। करीब 36 सालों (420 महीने) में सुनवाई के लिए 800 से ज्यादा तारीखें लगीं। आखिरकार शनिवार को अदालत ने इस पर फैसला सुनाया। वहीं पीड़ित परिवार फैसले से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि वे हाईकोर्ट में अपील करेंगे। पीड़ितों के अनुसार आज भी जब उस मंजर को याद करते हैं तो सहम जाते हैं। आगे जानें पीड़ितों की जुबानी मलियाना कांड की कहानी।

    प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पीएसी 23 मई 1987 को दोपहर करीब 2:30 बजे 44वीं बटालियन के कमांडेंट सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में मलियाना में घुसी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने आधिकारिक तौर पर 10 लोगों को मृत घोषित किया।

    अगले दिन जिलाधिकारी ने कहा कि मलियाना में 12 लोग मारे गए, लेकिन बाद में उन्होंने जून 1987 के पहले सप्ताह में स्वीकार किया कि पुलिस और पीएसी ने मलियाना में 15 लोगों की हत्या की थी। एक कुएं में भी कई शव मिले थे। 27 मई 1987 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मलियाना हत्याकांड की न्यायिक जांच की घोषणा की।

    मैं बच्चा था, पिता की लाश पड़ी थी 
    महताब (40) ने बताया कि दंगे के दौरान पिता अशरफ की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उस वक्त मैं बहुत छोटा था। पिता की लाश मेरे सामने पड़ी थी। जबकि उनका दंगे से कोई लेना देना नहीं था। न्यायालय का फैसला सही नहीं है। बातचीत कर जल्द हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

    पिता की कर दी थी हत्या 
    अफजाल सैफी (45) ने बताया कि दंगे के दौरान उनके पिता यासीन बाहर से घर की ओर लौट रहे थे। तभी रास्ते में दंगाइयों ने गोली मारकर शव शुगर मिल के पास फेंक दिया था। न्यायालय से आए फैसले पर विचार कर जल्द हाईकोर्ट में जाएंगे।

    घर में आग लगा दी गई थी 
    इंतजार(58) ने बताया कि ने दंगे के दौरान उनके घर में आगजनी कर दी। उस मंजर को सोचकर आज भी रूह कांप जाती है। न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

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