पिछले हफ्ते रिलीज फिल्म ‘भोला’ और इस शुक्रवार रिलीज फिल्म ‘गुमराह’ (2023) हिंदी सिनेमा के दो नए सबक हैं। ये सबक हिंदी फिल्मों के दर्शकों के लिए भी हैं। सबक ये उन फिल्म समीक्षकों के लिए भी हैं जिन्होंने फिल्म ‘भोला’ को अपनी स्टार रेटिंग से मालामाल कर दिया और फिल्म इसके बावजूद रिलीज के पहले हफ्ते (आठ दिन) में 60 करोड़ रुपये तक पहुंचने में हांफ गई। ‘भोला’ का सबक ये है कि किसी फिल्म का रीमेक बनाने से पहले इसके किरदारों का आसपास के वातावरण से साम्य साधना बेहद जरूरी है। और, फिल्म ‘गुमराह’ (2023) का सबक ये है कि हर ‘अर्जुन रेड्डी’ अपनी रीमेक में ‘कबीर सिंह’ नहीं हो सकती। खासतौर से तब जबकि रीमेक के लीड हीरो की खासियत बस उसका हीरो जैसा दिखना हो।
रीमेक से बाहर निकलने का समयअभी चार साल पहले रिलीज हुई तमिल फिल्म ‘थडम’ के रीमेक के रूप में बनी फिल्म ‘गुमराह’ (2023) हिंदी सिनेमा के गुमराह होने का एक और नमूना है। अरुण विजय की बेहतरीन अदाकारी वाली फिल्म ‘थडम’ के रीमेक में आदित्य रॉय कपूर डबल रोल कर रहे हैं। दोनों किरदारों का क्राइम कनेक्शन रोचक है लेकिन दोनों किरदारों का हिंदी रीमेक में चरित्र चित्रण ‘जुबली’ के जय खन्ना के संवाद की तर्ज पर कहें तो बहुत फिल्मी है। फिल्मों में काम करने का पहला सबक यही है कि इसमें एक ऐसी दुनिया रचनी होती है जो हो तो काल्पनिक लेकिन लगे असली सी। फिल्म का पूरा जादू इसी एक करिश्मे पर आधारित है। अभिनय से लेकर माहौल का जरा सा भी नकलीपन दर्शकों को इन दिनों बर्दाश्त नहीं होता।
आदित्य कपूर का एक जैसा अभिनयफिल्म चूंकि सस्पेंस थ्रिलर है लिहाजा इसकी कहानी के विस्तार में जाते ही इसका सस्पेंस खुल जाने का खतरा है। और, अदाकारी फिल्म के कलाकारों की ऐसी है नहीं जिस पर ज्यादा कुछ लिखा जा सके। आदित्य रॉय कपूर के भैया बड़े वाले प्रोड्यूसर हैं तो उनकी हर फिल्म कंपनी में आवभगत अच्छे से होती है। किरदार वह चाहे जो करें, कलाकारी उनकी सबमें एक जैसी रहती है। रोनित रॉय पर खाकी फबती है लेकिन कहानी के किरदार ही जब क्राइम पेट्रोल जैसे हों तो रोनिय रॉय भी क्या ही कर सकते हैं। वेदिका पिंटो जरूर आकर्षित करती हैं और क्राइम पार्टनर चड्ढी के किरदार में दीपक कालरा में संभावनाएं नजर आती हैं।
डेब्यू फिल्म में चूके वर्धनफिल्म ‘थडम’ अगर आपने देखी है तो उसके सामने फिल्म ‘गुमराह’ (2023) कहीं नहीं ठहरती और इसके लिए पूरी तरह से जिस एक शख्स की जिम्मेदारी बनती है, वह हैं फिल्म के निर्देशक वर्धन केतकर। एक्शन दृश्यों में ही अपनी पूरी ऊर्जा लगा देने वाले वर्धन ने अगर फिल्म के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर थोड़ा बेहतर काम किया होता तो ये फिल्म एक अच्छी मनोरंजक फिल्म साबित हो सकती है। अभी ये एक बहुत ही औसत मसाला फिल्म बनकर रह गई है। टी सीरीज की फिल्म में संगीत का स्तर गिरकर कहां आ पहुंचा है, उस पर अब कोई ज्यादा ध्यान देता भी नहीं हैं। उनके म्यूजिक वीडियोज व्यूज ला रहे हैं। फिल्मों की लागत ओटीटी राइट्स से निकल आ रही है। कारोबार अच्छा चल रहा है। सिनेमा की खास किसी की पड़ी भी नहीं है।










