Hong Kong: हांगकांग की आम छवि धनी लोगों के शहर की है, लेकिन यहां लगभग 20 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी गुजारती है। ऐसे लोग एक ही मकान के अंदर घेरा डाल कर दिन-रात गुजारते हैं। अकसर कहा जाता है कि ये लोग पिंजरों में रहते हैं.
महंगी गगनचुम्बी इमारतों वाले शहर हांग कांग में आवासीय संकट बढ़ता ही जा रहा है। हांगकांग में सामान्य मकान भी करोड़ों डॉलर में बिकते हैं। यहां तक कि पार्किंग स्थल की कीमत भी दसियों लाख डॉलर होती है। लेकिन इस शहर में ऐसे कम से कम दो लाख लोग हैं, जिन्होंने पांच वर्ष से ज्यादा समय पहले सब्सिडाइज्ड फ्लैट के लिए अर्जी दी थी और उनका इंतजार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।
हांगकांग की आम छवि धनी लोगों के शहर की है, लेकिन यहां लगभग 20 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी गुजारती है। ऐसे लोग एक ही मकान के अंदर घेरा डाल कर दिन-रात गुजारते हैं। अकसर कहा जाता है कि ये लोग पिंजरों में रहते हैं। हांगकांग को ब्रिटेन ने 1997 में कम्युनिस्ट चीन को लौटाया था। लेकिन यहां शासन बदलने के बावजूद गरीब लोगों की हालत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।
हांगकांग की आबादी 70 लाख से ज्यादा है। अधिकारियों का कहना है कि गुजरे दशकों में यहां आकर बसने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी, इसलिए वे मांग के मुताबिक आवास की सप्लाई नहीं कर पाए हैं। इस वजह से बहुत से लोगों को दड़बों में रहना पड़ता है। पिछले साल चीन की शी जिनपिंग की सरकार ने स्थानीय प्रशासन को आवास की समस्या हल करने का आदेश दिया था। उसके बाद शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जॉन ली ने पांच साल में 30 हजार मकान बनाने की योजना घोषित की।
लेकिन आलोचकों ने इस योजना के पूरा होने पर संदेह जताया है। उनके मुताबिक स्थानीय सरकार जमीन की नीलामी, बिक्री और टैक्सों पर निर्भर है। उसके सालाना राजस्व का लगभग 20 फीसदी हिस्सा इसी से आता है। ऐसे में जमीन की आपूर्ति को सीमित रखने में उसका अपना स्वार्थ है। जब तक यह स्थिति बनी रहेगी, हांगकांग की आवास समस्या का हल नहीं निकल सकता।
जानकारों के मुताबिक बीते तीन वर्षों में कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए हांगकांग में जो सख्त नीतियां अपनाई गईं, उनसे प्रशासन की मंशा पर सवाल और गहरा गए हैं। उस दौरान बड़े-बड़े क्वैरंटीन कैंप बनाए गए, ताकि हजारों मरीजों को सबसे अलग-थलग रखा जा सके। अब वे स्थल खाली पड़े हैं। हांगकांग के दक्षिणी जिले के काउंसिलर पॉल जिमरमैन ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘अब सवाल है कि इन कैम्पों का क्या किया जाए।’
शहर के वित्त सचिव के मुताबिक इन क्वैरेंटीन कैंम्पो को बनाने पर 76 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर रकम खर्च हुई थी। इन कैंपों को बनाने के लिए सरकार ने 80 हेक्टेयर जमीन का तुरंत इंतजाम कर लिया था और महीनों के भीतर 40 हजार इकाइयां बना दी गईं। अब जानकार सवाल उठा रहे हैं कि उस समय सरकार ने जो तेजी दिखाई, वैसा ही उसने आवास समस्या हल करने के लिए क्यों नहीं किया है?
स्थानीय थिंक टैंक लिबर रिसर्च कम्युनिटी से जुड़े विशेषज्ञ ब्रायन वॉन्ग ने सीएनएन से बातचीत में आरोप लगाया कि जमीन से प्राप्त होने वाले राजस्व से जुड़े स्वार्थ के कारण सरकार आवास समस्या को लटकाए हुए है। उन्होंने कहा कि आवास समस्या लालफीताशाही आधारित प्रशासनिक ढांचे का नतीजा है, जिसे सार्थक ढंग से हल करना फिलहाल संभव नहीं दिखता है।