पोस्टमार्टम हाउस में बोला था अतीक : मुन्ना! हम इहां आउब त हमार खोपड़ी जरा आराम से खोलिहौ

    माफिया अतीक को अपने अंजाम का शायद पहले से ही अंदाजा लग गया था। वह अच्छी तरह से जानता था कि उसे भी एक दिन उसी पोस्टमार्टम हाउस आना है, जहां उस पर अपने विरोधियों को पहुंचाने के आरोप लगते रहते थे।

     

     

     

    माफिया अतीक को अपने अंजाम का शायद पहले से ही अंदाजा लग गया था। वह अच्छी तरह से जानता था कि उसे भी एक दिन उसी पोस्टमार्टम हाउस आना है, जहां उस पर अपने विरोधियों को पहुंचाने के आरोप लगते रहते थे। उसके दिमाग में यह बात भी स्पष्ट तौर पर बैठी थी कि उसका अंत सामान्य तो नहीं ही होगा। वह अक्सर यह बातें अपने लोगों के बीच मजाकिया अंदाज में कहता रहता था।

    वह चुनावी मंचों से भी ठेठ इलाहाबादी अंदाज में अपनी बातें रख ठहाके लगवाता था। अमे…तमे वाली भाषा में बात करने का उसका अंदाज-ए-बयां माफिया से राजनेता बनने के बाद भी कायम था। उससे जुड़ा एक वाकया स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल परिसर स्थित पोस्टमार्टम हाउस का है। करीब 21 वर्ष पहले वह अपने किसी परिचित के पोस्टमार्टम के दौरान वहां पहुंचा था। काफिले के साथ पोस्टमार्टम हाउस के गेट पर उतरते ही अतीक ने शवों का चीर-फाड़ करने वाले दो कर्मियों तक अपना संदेश भेजा।

    उन्हें गेट पर ही बुलाया। सफेद कुर्ता-लुंगी और सिर पर सफेद गमछा बांधे अतीक को देख दोनों कर्मियों ने भाई सलाम… कहकर अभिवादन किया। अतीक ने उनका नाम लेकर अपने जानने वाले के शव के पोस्टमार्टम के बारे में जानकारी ली। बातचीत के दौरान ही 500-500 की नोट निकालकर उनकी मुट्ठी में थमाया। और फिर मजाकिया अंदाज में बोला, सुनो मुन्ना … जब हम इहां आउब त हमार खोपड़ी जरा आराम से खोलिहौ। छीनी-हथौड़ी चलावे में थोड़ा रहम करिहौ।

    यह सुन दोनों कर्मियों ने अरे भाई… कहा था कि अतीक हंस पड़ा। उसे हंसता देख वहां खड़े दूसरे लोग भी हंसने लगे। इसके बाद अतीक का काफिला वहां से रवाना हो गया। कुदरत का फैसला देखिए कि अतीक के सिर में ही गोलियां मारी गईं और उसका काफी हिस्सा क्षत विक्षत हो गया।

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