शिबू सोरेन: कोई ऐसे ही नहीं बनता है दिशोम गुरु, झारखंड कैसे करेगा याद

दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे. देश के सबसे बड़े आदिवासी जननेता का जाना भारतीय राजनीति खास कर आदिवासी राजनीति को प्रभावित करेगी. शिबू सोरेन का क्या कद था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वे बीमार होकर दिल्ली के अस्पताल में भर्ती थे तो उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू खुद अस्पताल गई थीं. सिर्फ झारखंड मुक्ति मोर्चा या उसके सहयोगी दल के नेता ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े नेता (इसमें गड़करी भी शामिल थे), भी गुरुजी का हाल जानने के लिए अस्पताल गए थे. उनका यह सम्मान था. पदों से ऊपर. झारखंड के अभिभावक के तौर पर उनकी पहचान रही है. एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपना पूरा जीवन झारखंड राज्य के निर्माण-पुनर्निर्माण और महाजनी प्रथा को खत्म करने में लगा दिया, जिसने पूरे झारखंड को अपना परिवार माना, जिसने आदिवासी समाज को मान-सम्मान के साथ जीना सिखाया, जिसने आदिवासी समाज के उत्थान के लिए संघर्ष किया

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