मधेपुरा समाजवादियों की धरती रही है. अगर आप पत्थर उछालें तो सौ में से अस्सी से अधिक बार वह किसी समाजवादी पर ही गिरेगा. मधेपुरा का यही परिचय है. बीएन मंडल, शरद यादव, लालू यादव जैसे नेता इसीलिए यहां से चुनाव लड़ते, जीतते रहे.” डॉ भूपेंद्र मधेपुरी मधेपुरा का यही परिचय देते हैं. भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ श्रीमंत जैनेन्द्र बताते हैं कि बुद्ध के प्रभाव के कारण इस इलाके में समाजवादी विचार का प्रसार हुआ. अंग प्रदेश से प्रस्थान के बाद बुद्ध अपने शिष्यों के साथ इस इलाके में आए, यहां कई बौद्ध मठ थे. पूरा इलाका बौद्ध धर्म के प्रभाव में रहा. इसलिए समाजवाद यहां ऐतिहासिक रूप से मौजूद था.” हालांकि इस ऐतिहासिक विरासत की चर्चा कम होती है. मधेपुरा पर चर्चा “रोम पोप का मधेपुरा गोप का” जैसे पॉपुलर नारे से ही होती है. दिलचस्प यह है कि मधेपुरा में पिछले 5 चुनाव में राजद कभी भी जदयू के मुकाबले अधिक सीटें नहीं जीत पाई. जबकि यादव मतदाताओं को राजद का कोर वोटर माना जाता हैमधेपुरा में कब किसका दबदबा 2020 के विधानसभा चुनाव मे मधेपुरा जिले की 4 में से 2 सीटें राजद ने तो 2 सीटें जदयू ने जीती. साल 2015 में तीन सीटें जदयू और एक राजद ने जीती. 2010 में भी यही परिणाम रहा था. 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में मधेपुरा के पांच में से चार सीटों पर जदयू ने और एक पर राजद ने कब्जा जमाया था. वहीं नवंबर में हुए चुनाव में सारी सीटें जदयू ने जीत ली. 2020 के चुनाव का प्रदर्शन पिछले 5 चुनाव में राजद का जिले में सबसे बेहतर प्रदर्शन था. मधेपुरा से प्रो चंद्रशेखर चुनाव जीते तो सिंगहेश्वर से चंद्रहास चौपाल. प्रो चंद्रशेखर ने जदयू के निखिल मण्डल और जाप के पप्पू यादव को चुनाव हराया था. जदयू ने आलमनगर और बिहारीगंज पर कब्जा जमाया था. नरेंद्र नारायण यादव और निरंजन मेहता चुनाव जीते थे. परिसीमन के बाद जदयू कभी भी इन दोनों सीटों पर चुनाव नहीं हारी.