2025 की संवैधानिकता को लेकर सुनवाई जारी है. बुधवार को इस कानून को लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के सामने सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो यह देखे कि वक्फ घोषित की गई संपत्ति को वक्फ संपत्ति माना जा रहा है या नहीं. इसपर CJI गवई ने कहा कि क्या 1923 के कानून में पंजीकरण का भी प्रावधान था? आपको बता दें कि इसे लेकर सिब्बल ने तर्क दिया था कि पंजीकरण 1954 से हुआ था, 1923 से नहीं. सिब्बल ने ये भी तर्क दिया था कि पंजीकरण 1954 से हुआ था, 1923 से नहीं. तुषार मेहता ने इसपर कहा कि मैं सीधे धारा से पढ़ रहा हूं. एक अभियान चल रहा है कि 100 साल पुरानी संपत्ति हम कागज़ कहां से लाएंगे. मुझे बताइए कि कागज़ कभी ज़रूरी नहीं थे. यह एक कहानी बनाई जा रही है. अगर आप कहते हैं कि वक्फ 100 साल से पहले बना था तो आप सिर्फ़ पिछले 5 सालों के ही दस्तावेज़ पेश करेंगे.यह महज़ औपचारिकता नहीं थी. अधिनियम के साथ एक पवित्रता जुड़ी हुई थी.1923 अधिनियम कहता है कि अगर आपके पास दस्तावेज़ हैं तो आप पेश करें. – अन्यथा आप मूल के बारे में जो भी जानते हैं, पेश करें.