थलपति विजय तमिल के साथ-साथ हिंदी भाषियों के भी सुपरस्टार हैं. उनकी फिल्मों को सभी पसंद करते हैं. मगर अब वो नया मुकाम पाना चाहते हैं. एमजीआर की तरह तमिल राजनीति पर छा जाना चाहते हैं. मदुरै में कल (बृहस्पतिवार) बड़ी रैली कर उन्होंने ये ऐलान भी कर दिया कि वो न तो सत्ताधारी डीएमके से गठबंधन करेंगे और न ही बीजेपी से. साफ है कि एआईडीएमके को वो गिनती में भी नहीं ले रहे. मगर क्या सच में ऐसा है? क्या बगैर किसी दल से गठबंधन किए विजय तमिलनाडु में सत्ता में आ पाएंगे? इसका जवाब जानने से पहले ये जान लीजिए कि सत्ताधारी डीएमके पहले से ही डीएमडीके (देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम) जैसी पार्टियों को अपने 10 से ज़्यादा चुनावी दलों के पहले से ही भरे-पूरे और परखे हुए गठबंधन में शामिल करने की कोशिश कर रही है. एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन भी अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. 1996 के अपने सबसे बुरे चुनाव में भी, एआईएडीएमके को लगभग 27 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन उसे केवल 4 सीटें मिलीं. 2011 के अपने सबसे बुरे विधानसभा चुनाव में, डीएमके गठबंधन ने लगभग 39 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया, लेकिन 234 सीटों में से केवल 31 सीटें ही हासिल कर पाया. उस चुनाव के बाद डीएमके ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी खो दिया था.