सत्ताधारी दल क्यों भागता है जेपीसी से दूर? राजनीति में यह है ‘डर और राज’ की कहानी!

    संसद के बजट सत्र में अदाणी मामले की जांच के लिए, ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) के गठन की मांग पर खूब हंगामा होता रहा। कांग्रेस एवं दूसरे विपक्षी दल, जेपीसी की मांग पर अड़े रहे। आखिर ‘संयुक्त संसदीय समिति’ के गठन से सत्ताधारी दल दूर क्यों भागते हैं, इस बात के पीछे कई तर्क दिए जाते हैं। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, देखिये इसके गठन का कोई नुकसान नहीं है, उसका फायदा ही रहता है। लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी बताते हैं, जेपीसी में बहुमत तो सत्ताधारी पार्टी का ही रहता है। कमेटी का चेयरमैन भी उसी पार्टी का सांसद होता है। ऐसा संभव है कि चेयरमैन अपने दल के नेतृत्व के मुताबिक रिपोर्ट को आकार दे। हां, इससे परे सत्ताधारी पार्टी के भीतर एक अपराध बोध रहता है। सरकार, पार्टी नेतृत्व और दूसरे लोग डरते हैं। उन्हें भय रहता है कि जेपीसी के समक्ष कई ‘राज’ खुल जाएंगे। संभव है कि उससे कोई नया बवाल मच जाए।

    जेपीसी को सरकार पॉजिटिव तरीके से ले

    जेपीसी को एक तय प्रक्रिया के तहत सबूत जुटाने का हक होता है। वह अपने समक्ष किसी भी व्यक्ति या संस्था को बुला सकती है। पूछताछ करने के अलावा विभिन्न पक्षों से दस्तावेज तलब करने का अधिकार जेपीसी के पास रहता है। अगर वह व्यक्ति या संस्था, जेपीसी के सामने पेश नहीं होता है, तो उसे संसद की अवमानना समझा जाता है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी कहते हैं, अगर कोई गंभीर मामला है तो सर्वोच्च न्यायालय उसके लिए जांच कमेटी बना सकता है। पेगासस सॉफ्टवेयर मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी गठित की थी। जहां तक ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) के गठन की बात है तो उसमें हर्ज क्या है। जेपीसी में तो अनेक राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि रहते हैं। वे अपने तरीके से बात रखते हैं। जब भी ‘ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी’ गठित हुई है, उससे फायदा ही हुआ है। जब अधिकांश दल किसी मुद्दे पर जेपीसी के गठन की मांग करते हैं तो सरकार को उसे पॉजिटिव तरीके से लेना चाहिए।

    संभव है कि दल के नेतृत्व के मुताबिक रिपोर्ट आए

    लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी बताते हैं, जेपीसी में बहुमत तो सत्ताधारी पार्टी का ही रहता है। कमेटी का चेयरमैन भी उसी पार्टी का सांसद होता है। ऐसा संभव है कि चेयरमैन अपने दल के नेतृत्व के मुताबिक रिपोर्ट को आकार दे। यूपीए सरकार के दौरान टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित की गई थी। कांग्रेस सांसद पीसी चाको को जेपीसी का अध्यक्ष बनाया गया। उस वक्त भाजपा सहित कई विपक्षी दलों ने जेपीसी के अध्यक्ष पीसी चाको को हटाने की मांग कर दी थी। कई सदस्यों का ऐसा मानना था कि रिपोर्ट में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को क्लीन चिट दी गई है। पूर्व संचार मंत्री ए. राजा को ही दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट लीक होने को लेकर भी संसद सदस्यों में नाराजगी दिखी। चाको के खिलाफ संसद में विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दिया।

    केवल यही भय रहता है, कई ‘राज’ खुल जाएंगे

    पीडीटी आचारी के मुताबिक, जिस मामले की जांच के लिए जेपीसी गठित की गई है, उस पर सुप्रीम कोर्ट की नजर भी रहनी चाहिए। आखिर सरकार, जेपीसी गठित करने से क्यों हिचकिचाती है, इस सवाल के जवाब में आचारी ने कहा, देखिये जेपीसी में बाकी राजनीतिक दलों के लोग भी होते हैं। अनेक ऐसी बातें जो पहले सार्वजनिक प्लेटफार्म पर नहीं थीं, संभव है कि वे बाहर आ जाएं। जेपीसी के समक्ष, मामले से जुड़े लोगों को बुलाया जाता है। सारा रिकॉर्ड तलब होता है। जिस कंपनी या संगठन पर आरोप लगे हैं, उसके लोग भी कमेटी के सामने आएंगे। बहुत सी ऐसी बातें, जो पर्दे के पीछे छिपी रहती हैं। सत्ताधारी दल भी नहीं चाहता कि वे सार्वजनिक हों। जेपीसी में वह पर्दा उठने की संभावना बनी रहती है। हालांकि जेपीसी के बल पर चुनाव नहीं लड़ा जाता। इसकी वजह से चुनाव में हार या जीत जैसा कुछ नहीं होता। पार्टी के भीतर एक अपराध बोध रहता है। नेतृत्व और पार्टी के दूसरे लोग डरते हैं। उन्हें भय रहता है कि कई ‘राज’ खुल जाएंगे। बाकी कोई विशेष तर्क नहीं है। ऐसा जरूरी नहीं है कि जेपीसी की जांच में अवश्य कुछ ठोस निकलेगा। केवल कुछ राज ही मालूम चलेंगे। बस इसी वजह से सत्ताधारी पार्टी, जेपीसी का गठन करने से बचती है।

    अभी तक इन मामलों में गठित हुई है जेपीसी

    1987 में जब राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप खरीद मामले में घोटाले के आरोप लगे तो जेपीसी गठित की गई थी। इसके बाद 1992 में जब केंद्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, तो सुरक्षा एवं बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता का आरोप लगा। उस वक्त पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। मामले की जांच के लिए विपक्ष ने जेपीसी गठित करने की मांग उठाई। नतीजा, दूसरी बार जेपीसी का गठन हुआ। साल 2001 में हर्षद मेहता स्टॉक मार्केट घोटाला सामने आया। इस मामले में भी विपक्षी दलों ने जेपीसी के गठन को लेकर सरकार पर दबाव डाला। उस साल तीसरी जेपीसी गठित की गई। इसके बाद देश में सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक पाए जाने का मामला गूंज उठा। संसद में जमकर हंगामा हुआ। 2003 में इस मामले की जांच के लिए जेपीसी गठित कर दी गई। यूपीए-2 के दौरान टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर विपक्ष ने कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों को घेर लिया। 2011 में पांचवीं बार जेपीसी का गठन हुआ। दो साल बाद वीवीआईपी चॉपर घोटाला सामने आ गया। इसके चलते संसद की कार्यवाही बाधित रही। विपक्ष के भारी विरोध के बीच साल 2013 में यूपीए सरकार को जेपीसी गठित करनी पड़ी। यह 6वीं जेपीसी थी। मोदी सरकार में 2015 में भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास बिल को लेकर जेपीसी का गठन किया गया। इसके बाद 2016 में आठवीं जेपीसी गठित की गई। इस बार जांच के दायरे में एनआरसी मुद्दा था।

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