शीर्ष कोर्ट की अहम टिप्पणी, एएमयू का ‘माइनॉरिटी’ दर्जा गैर-अल्पसंख्यकों से कमजोर नहीं

    सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ ने साफ किया है कि कुछ गैर-अल्पसंख्यकों की नियुक्ति से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का माइनॉरिटी स्टेटस / प्रकृति कमजोर नहीं होता। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की संविधान पीठ संसद से मिले अल्पसंख्यक दर्जा मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं। गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

    42 साल पहले मिला दर्जा, दशकों से हो रही है जिरह
    बता दें कि करीब 42 साल पहले एएमयू अलीगढ़ को अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया था। अदालत ने कहा, विश्वविद्यालय में कुछ प्रशासनिक पदों पर नियुक्त गैर-अल्पसंख्यक उम्मीदवार यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक संस्थान होने का दर्जा कमजोर नहीं करेंगे। संस्था के साथ इनके जुड़ाव के आधार पर नहीं कहा जा सकता कि एएमयू का माइनॉरिटी कैरेक्टर कमजोर होने की आशंका है। अदालत ने साफ किया कि गैर अल्पसंख्यकों की नियुक्तियां उस बिंदु तक नहीं हो सकतीं जहां पूरा प्रशासन गैर-अल्पसंख्यक हाथों में चला जाए।

    लगातार दूसरे दिन सुनवाई
    सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान कहा, किसी शैक्षणिक संस्थान के प्रशासन का कुछ हिस्सा गैर-अल्पसंख्यक अधिकारी देखते हैं, केवल इस दलील के आधार पर नहीं माना जा सकता कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का अल्पसंख्यक दर्जा कमजोर होने की आशंका है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ इस जटिल मुद्दे पर लगातार दूसरे दिन सुनवाई की। अदालत ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत देश के सभी अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषाई) को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार होगा।

    चीफ जस्टिस ने कहा- सरकार की मदद के बिना काम मुश्किल है
    सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, उदाहरण के लिए अगर आपको जमीन नहीं मिलती तो आप भवन निर्माण नहीं कर सकते। इसलिए आपका अस्तित्व उस पट्टे पर निर्भर है जो आपको सरकार से मिलता है… दूसरा, आज के समय में अगर आपको (सरकार से) सहायता नहीं मिलेगी तो आप काम नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि ये सभी पहलू किसी संस्थान के अस्तित्व, व्यावहारिक अस्तित्व के मद्देनजर प्रासंगिक हो सकते हैं। हालांकि, संस्थान की स्थापना पर इन पहलुओं का कोई असर नहीं पड़ता है।

    संस्था भूमि अनुदान पर आधारित
    पीठ ने कहा कि एएमयू के कुछ प्रशासनिक पदों पर गैर-अल्पसंख्यक उम्मीदवार हैं। एएमयू की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 30 की व्याख्या पर एक महत्वपूर्ण बात कही है। अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कौन कर सकता है? इस सवाल पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, कोई भी संस्था भूमि अनुदान के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकती।

    NO COMMENTS

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here

    Exit mobile version