साल ‘ऑपरेशन तहव्वुर’ पूरा हुआ. मुंबई हमले का गुनहगार भारत के कब्जे में है. पीएम मोदी जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिले तो प्रेस के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति ने कह दिया, “तहव्वुर राणा को भारत को सौंपा जाएगा.” ये अचानक नहीं हुआ था. भारत इसके लिए लगातार अमेरिका पर प्रेशर डाल रहा था और आखिरकार अमेरिका को भारत की बात माननी पड़ी. मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. रूस का खुलकर साथ देना हो या कतर से अपने पूर्व नेवी अधिकारियों को छुड़ाना. अमेरिका से टैरिफ पर बराबरी के स्तर पर बातचीत हो या मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर राणा को अमेरिका से खींचकर भारत लाना, ये भारत की नई कूटनीति है. यही नहीं चीन से गलवान पर दो-दो हाथ करना हो या कनाडा को दो टूक खालिस्तान के मुद्दे पर दुनिया के सामने बेनकाब करना, 2014 के बाद भारत का रुख साफ है. हम किसी के पचड़े में पड़ेंगे नहीं, और कोई हमारे मामले में टांग अड़ाएगा तो छोड़ेंगे नहीं. भारत की इसी कूटनीति को देख कनाडा और पाकिस्तान ने अपने यहां आतंकवादियों की एक के बाद एक हत्याओं की इल्जाम भारत की खुफिया एजेंसी रॉ पर लगाने की कोशिश की, मगर दुनिया को भी पता है कि भारत सीना ठोककर काम करता है. उसे इंटरनेशनल कानूनों को तोड़ने की जरूरत नहीं है.