बिहार के कोसी अंचल में स्थित मधेपुरा विधानसभा क्षेत्र 2025 के चुनावी रणभूमि के लिए तैयार है. यह विधानसभा सीट न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के कारण भी राज्य की पहचान का हिस्सा बन चुकी है. मधेपुरा, जो कभी सहरसा का अनुमंडल हुआ करता था, 1981 में जिला बना. यह क्षेत्र कोसी नदी की गोद में बसा है, जो जितनी उपजाऊ जमीन देती है, उतनी ही विनाशकारी बाढ़ से तबाही भी मचाती है. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस जिले को प्राकृतिक आपदाओं से निरंतर जूझना पड़ता है.मधेपुरा का सांस्कृतिक इतिहास उतना ही समृद्ध है, जितना इसका राजनीतिक अतीत. सिंहेश्वर स्थान में स्थित शिव मंदिर, ऋषि श्रृंग की कथाओं से जुड़ा है, जहां हर साल महाशिवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं. बाबा विशु राउत पचरासी धाम न केवल लोक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्रीय पहचान का भी केंद्र बन चुका है. इस पवित्र स्थल पर हर साल विशाल मेला लगता है, जिसका उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक कर चुके हैं.17 विधानसभा चुनाव, सभी में यादव उम्मीदवार जीतेराजनीतिक रूप से यह क्षेत्र ‘यादव राजनीति’ का गढ़ माना जाता है. 1957 से लेकर अब तक के 17 विधानसभा चुनावों में केवल यादव समुदाय के उम्मीदवारों को ही जीत मिली है. यही नहीं, लोकसभा चुनावों में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है. यहां के यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जिनकी संख्या क्षेत्र की कुल जनसंख्या में सबसे अधिक है. 2024 के आंकड़ों के अनुसार, विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 5,74,358 है, जिनमें 3,51,561 मतदाता हैं. इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,82,255, महिलाओं की संख्या 1,69,289 और 17 थर्ड जेंडर हैं.